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अमरूद की बागवानी

किसानों को होगा मुनाफा इलाहाबादी सुर्खा अमरुद किया जायेगा निर्यात

किसानों को होगा मुनाफा इलाहाबादी सुर्खा अमरुद किया जायेगा निर्यात

कौशांबी जनपद के प्रसिद्ध इलाहाबादी सुर्खा अमरूद शीघ्र ही दुसरे देशों में निर्यात किया जाएगा। अमरूद के बागानों में बैगिंग के लिए दिये जाने वाला प्रशिक्षण, फेरोमैन ट्रैप एवं कैनोपी प्रबंधन सफल साबित हो रहा है। इस सुर्खा अमरूद को इलाहाबादी अमरूद के नाम से भी जाना जाता है। यूपी के कौशांबी जनपद में अमरूद की बागवानी करने वाले कृषकों के अच्छे दिन शीघ्र आने वाले हैं। प्रदेश सरकार द्वारा अमरूद को क्षेत्रीय बाजार के अतिरिक्त विदेशों में निर्यात करने की व्यवस्था की शुरूआत की गयी है। फल की बैगिंग उद्यान विभाग के अधकारियों द्वारा एक्सपोर्ट क्वालिटी के अनुरूप करेंगे। डीडी उद्यान प्रयागराज मंडल डॉ कृष्ण मोहन चौधरी के अनुसार चायल विकासखंड के अमरूद फल की पट्टी क्षेत्र के बागानों में बैगिंग हो रही है। इसके लिए अमरूद के कृषकों को कई सारी गोष्ठियों का आयोजन करके जागरूक किया जायेगा। जिसकी सहायता से किसानों को अमरूद के बागानों में बैगिंग को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया सके। साथ ही, बागानों में एक्सपोर्ट क्वालिटी की पैदावार हो पायेगी।

अमरूद की बैगिंग के बारे में जानें

कौशांबी के नोडल वैज्ञानिक डॉ मनीष केशरवानी का कहना है, कि क्षेत्रीय अमरूद किसानों की इसी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अमरूद की बैगिंग प्रारंभ हो गयी है। बतादें कि, बैगिंग अमरूद के फल को एक विशेष प्रकार के बैग से ढ़कने की क्रिया है। अमरूद का फल जब फूल से फल में परिवर्तित होने लगता है, तब उसको एक विशेष प्रकार के पेपर बैग में ड़ालकर बाँध दिया जाता है। इस खास पैकिंग से अमरूद के फल को समुचित मात्रा में रौशनी तो प्राप्त होती ही है। साथ ही, बाहरी प्रदूषण एवं कीट संबंधित रोगों के संक्रमण से फल को बचाया जा सकता है।

फेरोमैन ट्रैप व कैनोपी प्रबंधन काफी सफल साबित हो रहा है

अमरूद के फलों को फ्रूट फ्लाई एवं उकठा रोग के संक्रमण के प्रभाव को वैज्ञानिक शोध उपचार के उपरांत बहुत हद तक नियंत्रित किया गया है। परिणामस्वरूप इस साल फल मंडी में सुर्खा अमरूद सभी मौसमी फलों को पीछे छोड़ रहा है। औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र खुसरोबाग प्रयागराज के प्रशिक्षण प्रभारी डॉ वीके सिंह के अनुसार कीट, प्रबंधन, कैनोपी, फल, मक्खी प्रबंधन से अमरूद की 90% हानियुक्त फसल को बचा लिया गया है। इसके उपरांत अब बैगिंग विधि से अमरूद को एक्सपोर्ट क्वालिटी के फल के स्तर पर पहुँचाने की कोशिश जारी है।


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कौशांबी जनपद में अमरूद की बहुत सारी भिन्न-भिन्न जगहों पर बाग लगे हुए हैं। जहां से अमरूद तैयार होने के बाद देश के विभिन्न स्थानों पर निर्यात किया जाता है और इससे इलाहाबाद के अमरूद के नाम से भी बुलाया जाता है। लोगों को इलाहाबादी अमरूद खाना बहुत अच्छा लगता है।
देश में सासनी का सुप्रशिद्ध अमरूद रोगग्रसित होने की वजह से उत्पादन क्षेत्रफल में भी आयी गिरावट

देश में सासनी का सुप्रशिद्ध अमरूद रोगग्रसित होने की वजह से उत्पादन क्षेत्रफल में भी आयी गिरावट

आपको बतादें, कि सासनी के अमरूद ने विगत 6 वर्षों में फल मंडी के अंतर्गत स्वयं की विशेष पहचान स्थापित की है। परंतु, अब दीमक एवं उकटा रोग जैसे रोगों की वजह से इस विशेष अमरूद के बाग काफी संकीर्ण होते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के सासनी क्षेत्र के प्रसिद्ध अमरूद के बागानों का क्षेत्रफल काफी कम होता दिखाई दे रहा है। इन अमरूदों ने विगत 6 दशकों के अंतर्गत फल मंडी में खुद का अच्छा खासा वर्चस्व स्थापित किया है। लेकिन वर्तमान में इन अमरूदों के बागान और पैदावार को दीमक रोग, उखटा रोग, कीट एवं मौसमिक मार की वजह से बर्बाद होती दिखाई दे रही है। हानि में होती वृद्धि की वजह से कृषकों ने अमरूद के बागों की अपेक्षा अन्य फसलों का उत्पादन करना आरंभ कर दिया है। हालाँकि, बागवानी विभाग द्वारा कृषकों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की गई है। फिर भी कीट-रोगों के संक्रमण में वृद्धि की वजह से उत्पादन में कमी होती दिखाई दे रही है। इस वजह से किसान समुचित आय अर्जित नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में किसान निराश और हतास होकर फिलहाल सासनी इलाके के अमरूद उत्पादक बागवानी को छोड़ते जा रहे हैं।

सासनी के अमरुद के बागानों में कमी आने की वजह

अमरूद की बागवानी करने वाले किसान वीरपाल सिंह का कहना है, कि इस वर्ष कम बारिश की वजह से अमरूद के बागों में बेहद गंभीर हानि हुई है। बागों में कीट संक्रमण भी देखने को मिल रहा है, जिससे बागवानी में काफी घटोत्तरी देखने को मिली है। साथ ही, कुछ किसानों का कहना है, कि उनके क्षेत्र का पानी बहुत बेकार है, जिसकी वजह से अमरूद के पेड़ों में दीमक का संक्रमण होना आरंभ हो जाता है। रोगों के चलते पेड़ में बहुत सूखापन हो जाता है। ऐसी स्थिति में स्वभाविक सी बात है, कि फलों की पैदावार अच्छी तरह से अर्जित नहीं हो पाती है। अधिकाँश ठंड के दिनों में पाले की वजह से पेड़ की टहनियां बेहद कमजोर हो जाती हैं एवं टूटके नीचे गिर पड़ती हैं, तो पैदावार में घटोत्तरी हो गई है।

अमरुद के बागों को कौन-कौन से रोग प्रभावित कर रहे हैं

कृषि क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन काफी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। बहुत से क्षेत्रों में फलों के बागान कीट-रोगों के संक्रमण की वजह से नष्ट होते जा रहे हैं। फिलहाल, मशहूर सासनी के अमरूद के बागानों के ऊपर भी दीमक और उखटा रोग का संकट काफी प्रभावित कर रहा है। पेड़ के ऊपरी भागों तक समुचित पोषण संचारित ना होने की वजह से पेड़ सूखकर नष्ट होते ही जा रहे हैं।
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बहुत से बागों में दीमक का संक्रमण आरंभ हो चुका है। ऐसी स्थिति में सामान्यतः पेड़ की जड़ें खोखली हो रही हैं। किसान अन्य पेड़ों को संक्रमण से बचाने के लिए रोगग्रस्त पेड़ पौधों को जड़ समेत उखाड़ फेंकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है, कि दीमक का संक्रमण बढ़ने की स्थिति में पेड़ की जड़ों में गोबर की खाद सहित ट्राइकोडर्मा उर्वरक का मिश्रण कर उपयोग करना चाहिए।

बागवानी विभाग द्वारा नई पहल शुरू की गई है।

मीडिया द्वारा दी गयी खबरों के हिसाब से हाथरस की जिला उद्यान अधिकारी अनीता यादव जी ने कहा है, कि उखटा रोग जैसी बहुत-सी बीमारियों के संक्रमण बड़ने पर कृषकों ने बागवानी के स्थान पर खेती करना आरंभ कर दिया है। इन चुनौतियों का निराकरण करने हेतु राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा वार्षिक नवीन बागों की स्थापना हेतु लक्ष्य तय किया गया है। इस वर्ष लगभग 30 हेक्टेयर में नवीन बागान लगाए गए हैं। इसके अंतर्गत 17 हैक्टेयर में अमरूद के बागान भी शम्मिलित हैं। पौधरोपण के उपरांत पेड़ बनने एवं फलों के पकने तक भिन्न-भिन्न कृषि कार्यों हेतु अनुदान प्रदान किया जाता है। अमरूद के बागान में कीट-रोगों के समुचित प्रबंधन हेतु कृषकों को भी शिविर के जरिए से जागरूक किया जा रहा है।

यह अमरुद बाजार में सासनी अमरुद के नाम से ही बिकता है

अगर सासनी के सुप्रसिद्ध अमरूदों की सप्लाई की बात करें तो उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी की जा रही है। सासनी के किसानों से अमरूद खरीदकर उनमें से बेहतरीन गुणवत्ता वाले अमरूदों को छांटा जाता है। अमरूद का भाव उसकी गुणवत्ता के अनुरूप निर्धारित किया जाता है। उसके बाद इन अमरूदों को पैक किया जाता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में माँग के अनुरूप आपूर्ति की जाती है। अन्य राज्यों में अमरूद सासनी अमरुद के नाम से ही बेचे जाते हैं।